jamai sasthi: एक पारंपरिक उत्सव, रिश्तों की मिठास और देवी षष्ठी की आराधना

jamai sasthi: भारतीय संस्कृति में रिश्तों को निभाने की परंपरा बेहद खास होती है, और उन्हीं रिश्तों में से एक है – ससुराल और जमाई का पावन संबंध। हर साल ज्येष्ठ मास की षष्ठी तिथि को बंगाल सहित भारत के कई हिस्सों में ‘जमाई षष्ठी’ का पर्व बड़े ही प्रेम, उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह दिन न केवल जमाई (दामाद) के आदर-सत्कार और सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह एक माँ की अपनी बेटी के सुख-समृद्धि और सौभाग्य के लिए की जाने वाली प्रार्थना का भी विशेष अवसर है। परंपरागत रीति-रिवाज़, विशेष पकवान, उपहार और पारिवारिक एकता – जमाई षष्ठी का हर पहलू हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को जीवंत करता है।

jamai sasthi 2025

jamai sasthi 2025 बंगाली संस्कृति का चिरंतन उत्सव

तिथि: Sun, 1 Jun, 2025 मुख्य रूप से मनाया जाता है: पश्चिम बंगाल, भारत

जमाई षष्ठी केवल एक पूजा नहीं, बल्कि सास और दामाद (जमाई) के रिश्ते को स्नेह, आशीर्वाद और मिठास से जोड़ने वाला पर्व है। यह परंपरा दर्शाती है कि कैसे भारतीय संस्कृति में पारिवारिक संबंधों को आदर और प्रेम के साथ निभाया जाता है।
इस दिन सास अपनी बेटी के पति को आमंत्रित कर, उन्हें बेटे के समान मानकर विशेष पूजन करती हैं, उपहार देती हैं, और समृद्धि की कामना करती हैं।


जमाई षष्ठी व्रत और पूजा विधि

पूजा का समय: यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है।पूजा प्रायः सुबह से दोपहर के बीच की जाती है।
ये व्रत कौन कर सकता हे: यह व्रत विशेष रूप से विवाहित बेटियों की माताएँ करती हैं। इसमें सास अपने दामाद के लिए देवी षष्ठी से आशीर्वाद माँगती हैं।


पूजा सामग्री (उपकरण):

  • व्रत की सामग्री और विधान —
  • षष्ठी देवी की तस्वीर/प्रतिमा (यदि उपलब्ध न हो तो चित्रित प्रतीक)
  • पाटा (बैठने का आसन) या नया कपड़ा
  • धान, दूब, दीपक, धूप, चंदन, सिंदूर, तेल
  • कच्ची हल्दी और सिंदूर लगी हुई सूती डोरी
  • मंगल घट
  • हल्दी लगे कपड़े के छोटे टुकड़े
  • नई 6 गांठ सूती डोरी
  • 6 पान के पत्ते
  • 6 सुपारी, बांस के पत्ते
  • फल (विशेष रूप से आम, कटहल, केला, जामुन, लीची)
  • मिठाई (मोआ, संदेश, खाजा)
  • दही, चिउड़ा
  • पूर्ण पात्र (पानी से भरा कलश, ऊपर आम के पत्ते और नारियल)
  • पूर्ण फल (मिठाई, पान, सुपारी, धान, दूब, सिंदूर सहित)

स्कंद षष्ठी पूजा विधि और मंत्र

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ‘अरण्य षष्ठी’ कहा जाता है। इस दिन स्त्रियाँ तालपत्र के पंखे और पूजा की अन्य सामग्री लेकर वन-प्रदेश में जाती हैं और वहाँ अरण्य षष्ठी देवी की पूजा करती हैं। पूजा पूर्ण होने के बाद व्रत की कथा का पाठ करती हैं और श्रवण करती हैं। इस दिन वे फल, मूल आदि खाकर व्रत का पालन करती हैं। ऐसा विश्वास है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से संतान दीर्घायु और ऐश्वर्यवान होती है।

इस व्रत का अनुष्ठान ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ही करना होता है। पूजा के स्थान पर षष्ठी देवी की मूर्ति या प्रतीकस्वरूप पिटुली (एक प्रकार की मिट्टी) से एक काली बिल्ली की आकृति बनाकर, उसके पास पिटुली की चूड़ियाँ बनाकर रखें, और वहीं एक मंगल कलश की स्थापना करें। इसके बाद पूजा में फल-मूल आदि अर्पित करें।

फिर छह पान के पत्ते और छह सुपारी को हल्दी रंगे कपड़े के टुकड़े में बाँस के पत्तों सहित लपेटें। उसके साथ छह गांठों वाला पीला रंगा धागा (जिसे ‘साठ सूत्र’ कहा जाता है) बाँध दें। चिउड़ा (चिढ़ा), खील, दही, तिल का तेल और हल्दी से माँ षष्ठी की विधिवत पूजा करें।

पूजा विधि:
स्वस्तिवाचन के बाद “सूर्यः सोमः” मंत्र का पाठ करके संकल्प करें:

“विष्णोर्मोहदा ज्येष्ठे मासि शुक्ल पक्षे षष्ठी तिथौ अमुक गोत्रा श्री अमुक देवी (या दासी) शुभलग्न में पति-पुत्रादि तथा समस्त देवताओं की पूजा करके, विश्ववासियों की प्राप्ति की कामना से स्कंद षष्ठी व्रत करूँगी।”

जमाई षष्ठी पूजन में स्कंदषष्ठी ध्यान:

ॐ द्विभुजां युवतीं षष्ठीं वराभययुता स्मरेत्।
गौरवर्णां महादेवीं नानालंकारभूषिताम्॥
दिव्यवस्त्रपरिधानां वामकरे सुपुत्रिकाम्।
प्रसन्नवदनां नित्यं जगद्धात्रीं सुखप्रदाम्॥
सर्वलक्षणसम्पन्नां पीनोन्नतपयोधराम्।
एवं ध्यान्येत् स्कंदषष्ठीं सर्वदा विंध्यवासिनीम्॥

अतः पश्चात यथाविधि पूजा समाप्त करके प्रणाम करें।

जमाई षष्ठी पूजा में प्रणाम मंत्र —
जय देवी जगन्माता गदाअनंदकारिणि।
प्रसीद मम कल्याणि नमस्ते षष्ठी देवते॥

इसके पश्चात अरण्य षष्ठी व्रत की कथा का पाठ या श्रवण करना चाहिए।


जमाई का स्वागत और पूजन विधि

जमाई षष्ठी पर दामाद की पूजा (पुत्र के रूप में):

जमाई षष्ठी के दिन आप सबसे पहले दामाद का सादर स्वागत करेंगे। इसके बाद नए वस्त्र—जैसे पंजाबी और धोती, या अगर जमाई आधुनिक वस्त्र पसंद करता हो, तो शर्ट-पैंट—उपहार में देंगे। दामाद आने से पहले घर के एक विशेष स्थान पर बड़ी सावधानी से बैठने की जगह तैयार करेंगे। दामाद उस वस्त्र को पहनकर उस आसन पर बैठेंगे, पर आदर और स्नेह के साथ वहां बैठने का अनुरोध करेंगे।

बैठने के बाद आसन के सामने बाएं तरफ एक दीपक जलाएंगे और एक तांबे की थाली में चावल, दूर्वा, सिंदूर, पान-सुपारी, और शंख सजाएंगे। साथ ही दूसरी तांबे की थाली में तरह-तरह के फल और मिठाइयां, जैसे मोवा या संदेस, भरी सजाकर दामाद को अर्पित करेंगे। फिर दामाद के दाहिने हाथ पर साठ सुतो बांधेंगे और माथे पर चंदन की बिंदी लगाएंगे। उसके बाद सिर पर चावल और दूर्वा छिड़ककर उसे आशीर्वाद देंगे। नीचे दिए गए सुंदर मंत्र का उच्चारण दामाद की मंगलकामना के लिए करेंगे।

मंत्र पढ़ने के बाद दामाद का स्वागत बरन डाला से करेंगे और शंख बजाएंगे। स्वागत के बाद जमाई को पुत्र-स्नेह से तांबे की थाली में रखे फल और मिठाइयां खिलाएंगे। अंत में, ताड़ के पत्ते से पंखा करके दामाद को ठंडक देंगे। यह केवल स्नेह प्रकट करने का तरीका नहीं, बल्कि आपकी हार्दिक सेवा और मेहमान के प्रति सम्मान का प्रतीक है।


दामाद के लिए आशीर्वाद मंत्र:-:

दीर्घायुस्त्वं भव स्वस्थः, संतानसम्पन्नयुक्तः।
सुखी भव गृह तेऽयं, धन-धान्य-साम्ययुक्तः।
माता-पितृ भक्तिशीलः, कन्या धर्मपथगामी।
षष्ठीदेवी प्रसन्ना त्वया, पूर्ण कुरु मम मनोऽर्थ॥

अनुवाद:
“तुम लंबी उम्र पाओ, स्वस्थ रहो, संतान-से संतुष्ट रहो।
तुम्हारे घर में सुख और शांति बनी रहे, धन-सम्पदा और वैभव से भरपूर रहो।
तुम ससुर-सासु के प्रति श्रद्धावान रहो, मेरी कन्या के साथ धर्म के मार्ग पर एक साथ चलो।
षष्ठीदेवी तुम पर दया करें, मेरी मनोकामनाएँ पूरी हों।”


भोज और विशेष पकवान

जमाई को पारंपरिक बंगाली थाली परोसी जाती है, जिसमें होते हैं:

  • पचव्यंजन युक्त पक्का भोजन
  • माछेर झोल (मछली की सब्ज़ी)
  • पायेश (खीर)
  • पक्कोआ, पराठा
  • मिठाई, आम, लीची आदि मौसमी फल

महत्वपूर्ण टिप्स:

  • पूजा के बाद ब्रत कथा अवश्य सुनें।
  • बेटी के लिए भी मंगल की प्रार्थना करें।
  • दामाद के साथ साथ पूरे परिवार को प्रसाद वितरित करें।
  • यह अवसर पारिवारिक मेलजोल और स्नेह की अभिव्यक्ति के लिए सर्वोत्तम है।

उपसंहार (निष्कर्ष)

जमाई षष्ठी सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय विशेषतः बंगाली संस्कृति में रिश्तों की मिठास, पारिवारिक एकता और सास-दामाद के स्नेहबंधन का प्रतीक पर्व है।
देवी षष्ठी की पूजा से न केवल दामाद का कल्याण होता है, बल्कि पूरे परिवार पर देवी की कृपा बनी रहती है।

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अस्वीकरण

यह लेख धार्मिक और आध्यात्मिक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई पूजा विधि, मंत्र और अन्य जानकारियाँ प्राचीन शास्त्रों, लोक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा और सुविधा के अनुसार पूजा विधि अपनाएं। किसी भी प्रकार की धार्मिक क्रिया को करने से पहले योग्य पंडित या विद्वान से परामर्श लेना उचित होगा। इस लेख में दी गई जानकारी का उपयोग पाठक की स्वयं की जिम्मेदारी पर होगा।

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मैं गोपाल चन्द्र दास — सनातन धर्म में गहरी आस्था रखने वाला एक गर्वित सनातनी, साधक और समर्पित लेखक हूँ। मुझे अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक विरासत पर गर्व है। मेरा उद्देश्य है हिंदू धर्म की शुद्ध, प्रामाणिक और ग्रंथों पर आधारित जानकारी को सरल, सहज और समझने योग्य भाषा में हर श्रद्धालु तक पहुँचाना।मैं अपने लेखों के माध्यम से व्रत-त्योहारों की सही विधियाँ, पूजा-पद्धतियाँ, धर्मशास्त्रों के सार, और आध्यात्मिक जीवन जीने के मार्ग को प्रस्तुत करता हूँ — ताकि सनातन धर्म के अनुयायी बिना किसी भ्रम या संशय के सच्ची श्रद्धा और विधि-विधान से धर्म का पालन कर सकें।

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