जमाई षष्ठी व्रत कथा: 7 बच्चों की मौत, एक रहस्य, और माँ षष्ठी का न्याय – जानिए जमाई षष्ठी व्रत कथा

यह जमाई षष्ठी व्रत कथा केवल एक पौराणिक कहानी नहीं है, बल्कि यह सत्य, न्याय और आत्मशुद्धि की शिक्षा देती है। माँ षष्ठी का यह व्रत और इसका महत्व इस कथा के माध्यम से उजागर होता है, जहाँ एक माँ की ममता, एक देवी की करुणा और धार्मिक व्रत की शक्ति एक साथ जुड़ी हुई है।

यह कहानी केवल पढ़ने की नहीं, बल्कि हृदय में उतारने योग्य है। आइए जानते हैं वह कालजयी शिक्षाप्रद कथा—छोटी बहू, काली बिल्ली और माँ षष्ठी के आशीर्वाद की अद्भुत गाथा।

जमाई षष्ठी व्रत कथा

लालची बहू और झूठा आरोप

जमाई षष्ठी व्रत कथा की शुरुआत एक ब्राह्मण परिवार से होती है, जिसमें तीन बेटे और तीन बहुएँ थीं। इनमें सबसे छोटी बहू खाने की बेहद लालची थी। वह घर का अच्छा खाना चुपचाप छिपा कर खुद खा जाती और दोष घर की पालतू काली बिल्ली पर डाल देती। यह वही काली बिल्ली थी जो माँ षष्ठी की सवारी मानी जाती है। वह रोज जंगल में जाकर माँ षष्ठी को छोटी बहू की चोरी की सारी बातें बताती। लेकिन छोटी बहू कभी अपना अपराध स्वीकार नहीं करती।

अरण्य षष्ठी व्रत का दिन

कुछ समय बीता और ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि आई—अरण्य षष्ठी का दिन। ब्राह्मणी ने व्रत का आयोजन किया और खुद अपने हाथों से पायस, खीर, मिठाई और नारियल के लड्डू बनाए। फिर उन्होंने छोटी बहू से कहा, “बहू, मैं स्नान के लिए जा रही हूँ। तुम यहां बैठकर इन चीज़ों का ध्यान रखना, कहीं बिल्ली इन्हें ना खा ले।” ब्राह्मणी के जाते ही छोटी बहू इतने स्वादिष्ट व्यंजन देखकर अपने लालच पर काबू नहीं रख पाई।

उसने मिठाई, खीर, दही—सब चट कर लिया और बिल्ली के मुंह पर थोड़ी सी दही लगाकर ब्राह्मणी को भ्रमित करने की कोशिश की। ब्राह्मणी लौटकर देखती हैं कि अधिकांश प्रसाद गायब है। उन्होंने बहू से पूछा, “यह सब किसने खा लिया?” छोटी बहू बोली, “माँ, मैं तो ज़रा ध्यान हटाई और बिल्ली ने सब चट कर लिया, उसके मुँह पर भी दही लगा है।” यह कहकर उसने बिल्ली को बहुत मारा।


माँ षष्ठी का क्रोध और शाप

इसके बाद ब्राह्मणी ने दोबारा प्रसाद तैयार किया और पूजा की। इधर वह बिल्ली दुखी होकर जंगल की ओर चली गई और माँ षष्ठी के पास जाकर रो-रो कर अपना दुख सुनाया। माँ षष्ठी ने कहा, “मैं सब जानती हूँ, तू चिंता मत कर। वह बहू शीघ्र ही अपने कर्मों का फल पाएगी।”

बहू की संतानों का विलय

कुछ समय बाद छोटी बहू गर्भवती हुई और दस महीने बाद उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। पूरे घर में खुशी छा गई। लेकिन दुर्भाग्यवश, अगली सुबह वह बच्चा गायब हो गया। इसके बाद भी बहू के सात बेटे और एक बेटी हुए, पर हर बार वही घटना घटी—रात में बच्चा रहता, पर सुबह गायब हो जाता। गाँव के लोग कहने लगे कि बहू कोई राक्षसी है जो अपने बच्चों को खा जाती है।

अपमान और दुःख से टूटकर एक दिन वह बहू घर छोड़ जंगल की ओर चली गई और माँ षष्ठी के चरणों में गिरकर रोने लगी, “हे माँ, तूने मुझे संतानें दी, फिर सब छीन क्यों लीं? अब मुझे भी अपने पास बुला ले।”


माँ षष्ठी का साक्षात्कार और पश्चाताप

बहू की करुण पुकार सुनकर माँ षष्ठी एक वृद्धा का रूप धारण कर उसके सामने आईं और पूछा, “क्या हुआ बेटी, क्यों रो रही हो?”
बहू ने अपना सारा दुःख कह सुनाया। माँ ने कहा, “तू अपने असली पाप क्यों छिपा रही है? तूने ही चुपचाप मिठाई खाई और दोष बिल्लियों पर डाला। यही तेरे दुख का कारण है।”

बहू उनके चरणों में गिर पड़ी और कहा, “माँ, मुझे क्षमा करो, अब मैं वही करूँगी जो तुम कहोगी।”माँ षष्ठी ने कहा, “सड़क के किनारे जो मरी हुई बिल्ली पड़ी है, उस पर एक मटकी दही उड़ेलो, फिर उसे जीभ से चाटकर उसी मटकी में वापस भरो। तभी तुम्हें संतानें वापस मिलेंगी।”

संतानों की वापसी और व्रत की महिमा

छोटी बहू ने तुरंत वैसा ही किया। मटकी में दही भरकर मरी हुई बिल्ली पर उड़ेल दिया और फिर जीभ से चाटकर मटकी में दही वापस भर लाई।

माँ षष्ठी ने उसे उसके सभी बच्चे लौटा दिए और कहा:
“यह लो अपने बच्चे। इस अमृत तुल्य दही से सबके मस्तक पर तिलक करो और सुख-शांति से जीवन बिताओ। पर ध्यान रखना, पूजा का प्रसाद चुराकर मेरी सवारी पर दोष मत देना और कभी भी अपने बच्चों को ‘मर जा’ जैसे शब्द मत कहना। अगर कोई ऐसा कहे तो उसे समझाना कि—’मैं माँ षष्ठी की दासी हूँ और कहती हूँ—षाट षाट (६६ बार) मत कहो ऐसा।'”

यह कहकर माँ अरण्य षष्ठी अदृश्य हो गईं।


परिवार की खुशी और व्रत की परंपरा

छोटी बहू अपने सात पुत्र और एक पुत्री को लेकर ससुराल लौटी और अपनी सास के चरणों में गिर पड़ी। उसने माँ षष्ठी द्वारा कही सारी बातें उन्हें बताईं। ब्राह्मणी चकित रह गईं और प्रसन्नता से भर उठीं।

कुछ वर्षों में नातियों की शादी हो गई। अगले वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी को छोटी बहू ने धूमधाम से अरण्य षष्ठी का व्रत किया और अपने दामाद को निमंत्रण देकर उसके मस्तक पर दही का तिलक लगाया। तभी से इस व्रत को ‘जमाई षष्ठी’ या ‘षष्ठी बाटा’ के नाम से जाना जाने लगा।

व्रत का फल

इस व्रत को करने से माँ षष्ठी संतान की रक्षा करती हैं और परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। विशेषकर माताएँ यदि यह व्रत करती हैं तो उनकी संतानें दीर्घायु और सुखी होती हैं।

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अस्वीकरण

यह लेख धार्मिक और आध्यात्मिक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई पूजा विधि, मंत्र और अन्य जानकारियाँ प्राचीन शास्त्रों, लोक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा और सुविधा के अनुसार पूजा विधि अपनाएं। किसी भी प्रकार की धार्मिक क्रिया को करने से पहले योग्य पंडित या विद्वान से परामर्श लेना उचित होगा। इस लेख में दी गई जानकारी का उपयोग पाठक की स्वयं की जिम्मेदारी पर होगा।

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मैं गोपाल चन्द्र दास — सनातन धर्म में गहरी आस्था रखने वाला एक गर्वित सनातनी, साधक और समर्पित लेखक हूँ। मुझे अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक विरासत पर गर्व है। मेरा उद्देश्य है हिंदू धर्म की शुद्ध, प्रामाणिक और ग्रंथों पर आधारित जानकारी को सरल, सहज और समझने योग्य भाषा में हर श्रद्धालु तक पहुँचाना।मैं अपने लेखों के माध्यम से व्रत-त्योहारों की सही विधियाँ, पूजा-पद्धतियाँ, धर्मशास्त्रों के सार, और आध्यात्मिक जीवन जीने के मार्ग को प्रस्तुत करता हूँ — ताकि सनातन धर्म के अनुयायी बिना किसी भ्रम या संशय के सच्ची श्रद्धा और विधि-विधान से धर्म का पालन कर सकें।

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