
क्या है अमला नवमी?
अमला नवमी व्रत कथा: कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अमला नवमी या आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि माना जाता है कि इस वृक्ष में स्वयं देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का वास होता है। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत में लोकप्रिय है और इसे आंवला नवमी, अक्षय नवमी, या कूष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है।
अमला नवमी व्रत का महत्व
अमला नवमी का व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि, संतान सुख, दीर्घायु और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने और भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए दान-पुण्य का फल अक्षय माना जाता है – अर्थात् यह कभी नष्ट नहीं होता।
अमला नवमी व्रत कथा
अमला नवमी व्रत कथा:- एक बार की बात है, एक राजा था जिसका नाम “आंवलया राजा” था क्योंकि उसने यह प्रण लिया था कि वह रोज़ाना सवा मन आंवले दान किए बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगा। यह अनोखी परंपरा उसकी पहचान बन गई थी। लेकिन समय के साथ, राजा के बेटे और बहू को चिंता होने लगी कि इस निरंतर दान के कारण राज कोष के खजाना खाली हो जाएगा। उन्होंने राजा को यह सलाह दी कि वह दान बंद कर दें।
यह सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ। वह और उसकी रानी महल छोड़कर जंगल में चले गए। वहां, वे आंवले दान करने में असमर्थ हो गए और अपने प्रण के कारण भूखे रह गए। सात दिन बीत गए और जब भगवान ने यह देखा कि राजा और रानी अपने व्रत के कारण कष्ट झेल रहे हैं, तो उन्होंने चमत्कार किया।
भगवान ने उसी जंगल में एक भव्य महल और हरे-भरे बाग-बगीचे बना दिए, जहां आंवले के पेड़ भी लहलहाने लगे। सुबह जब राजा-रानी जागे, तो उन्होंने देखा कि उनके चारों ओर एक नया राज्य स्थापित हो चुका है, जो उनके पुराने राज्य से भी बड़ा था। राजा ने प्रसन्न होकर रानी से कहा, “रानी, सत्य का पालन करने से ही हमारा कल्याण हुआ है। चलो, नहा-धोकर आंवले दान करें और भोजन ग्रहण करें।”
अब राजा-रानी ने खुशी-खुशी आंवले दान किए और जंगल में रहने लगे। दूसरी ओर, आंवला देवता का अपमान करने और माता-पिता के साथ बुरा व्यवहार करने के कारण बेटे और बहू के बुरे दिन शुरू हो गए। उनका राज्य दुश्मनों ने छीन लिया और वे दर-दर भटकने लगे। अंत में, वे एक काम की तलाश में उसी राज्य में आ पहुंचे जहां उनके माता-पिता अब रह रहे थे।
हालात ने उन्हें इतना बदल दिया था कि राजा ने उन्हें पहचान नहीं पाया और काम पर रख लिया। एक दिन, जब बहू रानी के बाल गूंथ रही थी, तो उसने रानी की पीठ पर एक मस्सा देखा। उसे यह सोचकर बहुत दुख हुआ कि ऐसा मस्सा उसकी सास की पीठ पर भी था। बहू को एहसास हुआ कि उन्होंने आंवले दान रोककर कितनी बड़ी गलती की थी।
उसके आंसू रानी की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने पलट कर उससे कारण पूछा, और बहू ने अपना दुख व्यक्त किया। तब रानी ने उसे पहचान लिया और उसे समझाया कि दान करने से धन नहीं घटता, बल्कि बढ़ता है।
बेटे-बहू ने अपनी गलती को समझा और वे भी अब खुशी-खुशी अपने माता-पिता के साथ रहने लगे। अंत में, सब सुखी और संतुष्ट जीवन जीने लगे। यह कहानी हमें सिखाती है कि सत्य और दान का पालन करने से जीवन में सदैव समृद्धि और शांति बनी रहती है।
पूजा विधि (Amla Navami Puja Vidhi)
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- आंवले के वृक्ष को गंगाजल से स्नान कराएं और दीपक, चंदन, पुष्प, रोली, चावल आदि से पूजा करें।
- वृक्ष की परिक्रमा करें और उसके नीचे बैठकर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का ध्यान करें।
- आंवले के फल से बनी सामग्री का भोग लगाएं।
- कथा सुनें या पढ़ें और अंत में आरती करें।
- आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर प्रसाद ग्रहण करें।
देवी की महिमा
हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि:
“आंवलकं फलं पुण्यं यत्र तिष्ठति नारद।
तत्र तिष्ठति लक्ष्मीश्च नारायण: सनातन:॥”
भावार्थ: हे नारद! जहाँ आंवला वृक्ष होता है, वहाँ स्वयं देवी लक्ष्मी और श्रीहरि नारायण का वास होता है।
इसलिए इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन करना केवल एक वृक्ष की पूजा नहीं, बल्कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना है। आंवला त्रिदोष नाशक, अमृततुल्य औषधीय गुणों से युक्त है – इसीलिए इसे धर्म, आरोग्य और आयु का प्रतीक माना गया है।
निष्कर्ष
अमला नवमी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि यह प्रकृति, स्वास्थ्य और देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा का उत्सव है। आंवले जैसे पवित्र वृक्ष के नीचे पूजा कर हम न केवल धार्मिक पुण्य प्राप्त करते हैं, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य भी स्थापित करते हैं।