भगवत गीता पढ़ने की विधि: जानें कैसे ये दिव्य ग्रंथ आपके जीवन को सही दिशा दिखा सकता है

भगवत गीता पढ़ने की विधि: भगवद गीता कोई साधारण ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर मार्गदर्शन देने वाला दिव्य ग्रंथ है। इसमें श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना महाभारत के समय था। लेकिन इस अमूल्य ग्रंथ का वास्तविक लाभ तभी मिलता है जब इसे श्रद्धा, नियम और सही विधि से पढ़ा जाए। गीता का हर श्लोक गहराई से जुड़ा होता है आत्मा, धर्म और कर्तव्य से — इसलिए इसे पढ़ने से पहले कुछ आवश्यक नियमों और विधियों को समझना बेहद ज़रूरी है, ताकि इसका सार हृदय में उतर सके और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सके।

भगवत गीता पढ़ने की विधि

भगवत गीता पढ़ने की विधि और आवश्यकता

मनुष्य ईश्वर के सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना है। मानव जीवन का एक महान उद्देश्य और कर्तव्य है, जो है ब्रह्म जिज्ञासा — “मैं कौन हूँ?”, “मैं कहाँ से आया हूँ?”, “मैं यहाँ इतनी पीड़ा क्यों सह रहा हूँ?” जब तक इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलता है, तब तक मनुष्य सही मायने में मनुष्य नहीं बन सकता। “मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ, और अनमोल है।” यदि इस जीवन का सही उपयोग न किया जाए, तो यह जीवन व्यर्थ चला जाता है। ब्रह्म जिज्ञासा के उत्तर प्राप्त करने के लिए सनातन धर्म के प्रमुख ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन करना आवश्यक है।

श्रीमद्भगवद्गीता हमारे जीवन का मार्गदर्शक है। स्वयं परमेश्वर श्रीकृष्ण ने इस ग्रंथ के माध्यम से जीवन का सही दृष्टिकोण और उद्देश्य सिखाया है। लेकिन बहुत से लोग गीता पाठ के सही नियमों को न जानने के कारण भ्रमित हो जाते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि यदि वे संस्कृत में श्लोक नहीं पढ़ सकते या समझ सकते, तो वे गीता का पाठ नहीं कर सकते। लेकिन वास्तव में, गीता पाठ के लिए कोई कठोर नियम नहीं है। कोई भी व्यक्ति भगवान के प्रति श्रद्धा रखते हुए गीता पाठ शुरू कर सकता है। यह ज्ञान का महासागर है, जो मानव जीवन को आलोकित करता है।


गीता पाठ का तरीका सरल में

स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, पवित्र स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। और श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ शुरू करें इस प्रकार से

  • “पहले हाथ जोड़कर ‘ॐ तत्सत्’ मंत्र का उच्चारण करें।
  • इसके बाद श्री गुरुदेव प्रणाम मंत्र का उच्चारण करें ‘ॐ अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुरुनमिलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।‘ इस प्रकार से
  • इसके बाद सरस्वती-व्यासादि प्रणाम मंत्र:”नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्॥”
  • इसके बाद श्रीकृष्ण प्रणाम मंत्र का श्रद्धापूर्वक जप करें। ‘हे कृष्ण करुणा सिंधु दीनबन्धु जगत्पथे। गोपेश गोपिका कान्ता राधा कान्ता नमः स्तुते। नमः ब्रह्मण्य देवाय गो ब्रह्मण्य हिताय च। जगद्धिताय श्रीकृष्णाय गोविन्दाय वासुदेवाय नमः नमः।’
  • इसके बाद राधारानी प्रणाम मंत्र: ‘तप्तकांचनगौरांगी राधे वृन्दावनेश्वरी। बृषभानुसुते देवी प्रणमामि हरिप्रिये।’
  • इसके बाद वैष्णव प्रणाम मंत्र: ‘वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।’
भगवत गीता पढ़ने की विधि

भगवत गीता पढ़ने की सही विधि

अध्याय की घोषणा: पाठ शुरू करने से पहले अध्याय का नाम और जिन श्लोकों का पाठ किया जाएगा, उनका उल्लेख करें। उदाहरण के रूप में कहा जा सकता है—
“अथ श्रीमद्भगवद्गीता चौथा अध्याय, ज्ञानयोग, ३८वें श्लोक से ४२वें श्लोक तक।”

श्लोक पाठ: इसके बाद श्लोक का उच्चारण करें, जैसे—“श्रीभगवान उवाच: न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।”

अनुवाद: श्लोक का अर्थ स्पष्ट करने के लिए उसका हिंदी अनुवाद पढ़ें —“इस संसार में दिव्य ज्ञान से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है। जो व्यक्ति निरंतर योग का अभ्यास करके अपने मन को शुद्ध करता है, वह सही समय पर अपने हृदय में इस ज्ञान का अनुभव करता है।”

अर्थ और व्याख्या: श्लोक को पढ़ने के बाद उसके गहरे अर्थ को समझने का प्रयास करें। विचार करें कि इस ज्ञान को अपने जीवन में कैसे लागू किया जा सकता है, ताकि आध्यात्मिक और व्यवहारिक दृष्टि से इसका अधिकतम लाभ प्राप्त हो।


गीता पाठ समाप्ति के नियम

श्रीमद्भगवद्गीता के 18 पवित्र नामों का पाठ करें:

ॐ गंगा, गीता, सावित्री, सीता, सत्य, पतिव्रता, ब्रह्मावली, ब्रह्मविद्या, त्रिसंध्या, मुक्तिगेहिनी, अर्धमात्रा, चिदानन्दा, भवघ्नी, भ्रांतिनाशिनी, वेदत्रयी, परानन्दा, तत्त्वार्था, ज्ञानमंजरी।

पंचतत्व और हरे कृष्ण महामंत्र का पाठ करें:

श्रीकृष्णचैतन्य, प्रभु नित्यानंद, श्रीअद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौरभक्तवृंद।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

क्षमायाचना मंत्र बोलें:

“यदि कोई अक्षर छूट गया हो या उच्चारण में कोई मात्रा की त्रुटि हो गई हो, तो वह सब जनार्दन की कृपा से पूर्ण हो जाए।”
“यदक्षरं परिभ्रष्टं मात्राहीनं च यद् भवेत्। पूर्णं भवतु तत्सर्वं तत्प्रसादात् जनार्दनः॥”

शांति मंत्र से पाठ का समापन करें:

“ॐ सर्वे सुखिनः भवन्तु, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥”


गीता पाठ के दौरान ध्यान देने योग्य बातें

  • शुद्ध उच्चारण का प्रयास करें, लेकिन श्रद्धा ही सर्वोपरि है।
  • प्रतिदिन एक अध्याय पढ़ने का प्रयास करें, यदि संभव न हो तो कुछ श्लोक भी पर्याप्त हैं।
  • मन को शांत रखें और पूरे ध्यान से गीता का पाठ करें।
  • गीता के ज्ञान को केवल पढ़ने तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपने जीवन में अपनाएँ।
  • गीता के गहरे अर्थ को समझने के लिए किसी गुरु या अनुभवी व्यक्ति की सहायता लें।

गीता पाठ के लाभ

  • मानसिक शांति और जीवन की जटिल समस्याओं का समाधान।
  • आत्म-उन्नति और मनोबल में वृद्धि।
  • सही धर्म, कर्म और जीवन दर्शन की प्राप्ति।

गीता का पाठ करें, उसका चिंतन करें और अपने जीवन को सफल बनाएं!

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अस्वीकरण

यह लेख धार्मिक और आध्यात्मिक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई पूजा विधि, मंत्र और अन्य जानकारियाँ प्राचीन शास्त्रों, लोक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा और सुविधा के अनुसार पूजा विधि अपनाएं। किसी भी प्रकार की धार्मिक क्रिया को करने से पहले योग्य पंडित या विद्वान से परामर्श लेना उचित होगा। इस लेख में दी गई जानकारी का उपयोग पाठक की स्वयं की जिम्मेदारी पर होगा।

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मैं गोपाल चन्द्र दास — सनातन धर्म में गहरी आस्था रखने वाला एक गर्वित सनातनी, साधक और समर्पित लेखक हूँ। मुझे अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक विरासत पर गर्व है। मेरा उद्देश्य है हिंदू धर्म की शुद्ध, प्रामाणिक और ग्रंथों पर आधारित जानकारी को सरल, सहज और समझने योग्य भाषा में हर श्रद्धालु तक पहुँचाना।मैं अपने लेखों के माध्यम से व्रत-त्योहारों की सही विधियाँ, पूजा-पद्धतियाँ, धर्मशास्त्रों के सार, और आध्यात्मिक जीवन जीने के मार्ग को प्रस्तुत करता हूँ — ताकि सनातन धर्म के अनुयायी बिना किसी भ्रम या संशय के सच्ची श्रद्धा और विधि-विधान से धर्म का पालन कर सकें।

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