एकादशी व्रत को हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। यह व्रत केवल भोजन का त्याग नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म की पवित्रता का अभ्यास है। परंतु क्या आप एकादशी व्रत की सही विधि जानते हैं? बहुत से लोग अनजाने में ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं जिससे व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता। इस लेख में हम जानेंगे एकादशी व्रत करने की शुद्ध प्रक्रिया, पूजन विधि और वह सावधानियाँ जो हर व्रती को ध्यान रखनी चाहिए।

एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी व्रत की विधि: एकादशी व्रत हिंदू सनातन धर्म में सबसे श्रेष्ठ और पवित्र व्रतों में से एक माना जाता है। यह सभी शुभ कर्मों में सर्वोपरि है और मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने दो बार एकादशी तिथि आती है—एक बार शुक्ल पक्ष में और दूसरी बार कृष्ण पक्ष में।
जो लोग शास्त्रों के अनुसार श्रद्धा और भक्ति के साथ एकादशी व्रत का पालन करते हैं, वे न केवल अपने सभी पापों से मुक्त होते हैं, बल्कि वैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त करते हैं। ऐसा माना जाता है कि एकादशी देवी स्वयं श्रीहरि के अंग से उत्पन्न हुई हैं, और इस दिन समस्त पाप अन्न और पंच रबी फसलों में वास करते हैं। अतः, जो व्यक्ति एकादशी के दिन अन्न और पंच रबी फसलों का सेवन करता है, उसके शरीर में वे पाप प्रविष्ट हो जाते हैं, जो आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
इसलिए, हर व्यक्ति को श्रद्धा और नियमपूर्वक एकादशी व्रत करना चाहिए। भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए इस पवित्र उपवास को दृढ़ संकल्प के साथ धारण करना चाहिए और जीवन के समस्त पापों से मुक्ति पाकर आध्यात्मिक प्रगति की ओर अग्रसर होना चाहिए। अब आइए, एकादशी व्रत की विधि और नियमों को विस्तार से जानते हैं।
एकादशी उपवास की तिथि निर्धारण
एकादशी उपवास के लिए तिथि की शुद्धता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। शास्त्रों के अनुसार, यदि एकादशी के सूर्योदय से पूर्व अरुणोदय काल (सूर्योदय से 1 घंटे 36 मिनट पूर्व) में दशमी तिथि विद्यमान हो, तो उस एकादशी का व्रत ग्रहण करना निषिद्ध माना गया है। दूसरी ओर, यदि एकादशी के अंतिम भाग में द्वादशी तिथि का संयोग हो, तो वह व्रत ग्रहण करने योग्य एवं शास्त्रसम्मत माना जाता है।
एकादशी व्रत पालन की तैयारी: दशमी तिथि में किए जाने वाले कार्य
एकादशी व्रत के नियमों का सही प्रकार से पालन करना अत्यंत आवश्यक होता है। व्रत की सफलता और इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए उपवास से एक दिन पूर्व, अर्थात दशमी तिथि को कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए।
- सात्त्विक भोजन ग्रहण करें
- दशमी तिथि के दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक केवल एक बार सात्त्विक और शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस दिन तामसिक या मांसाहारी भोजन का सेवन पूरी तरह वर्जित होता है। इसके अलावा, भोजन को सूर्यास्त से पहले या अधिकतम रात्रि 12 बजे तक ग्रहण कर लेना चाहिए, ताकि एकादशी के दिन शरीर में पूर्वाहार का कोई अंश न रहे। ऐसा न करने से व्रत की शुद्धता भंग हो सकती है और इसका आध्यात्मिक प्रभाव भी कम हो सकता है।
- दंत एवं मुख की शुद्धता
- भोजन ग्रहण करने के पश्चात तथा शयन से पूर्व दाँतों को अवश्य ब्रश करें और मुख को पूर्णतः स्वच्छ करें। मुख के भीतर कोई भी खाद्य कण या अवशिष्ट पदार्थ शेष न रहे, इस पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। ऐसा करने से एकादशी व्रत के दिन शुद्धता बनी रहेगी और व्रत का संपूर्ण लाभ प्राप्त होगा।
- बर्तन धोना एवं स्वच्छता बनाए रखना
- दशमी तिथि को प्रयुक्त सभी बर्तनों को भली-भांति धोकर शुद्ध कर लेना चाहिए। एकादशी के दिन के लिए जूठे बर्तन संचित रखना अनुचित है। स्वच्छता बनाए रखना केवल शारीरिक शुद्धता के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक एवं आध्यात्मिक पवित्रता का भी प्रतीक है।
- दांपत्य संबंध एवं सहवास से विरत रहना
- शास्त्रों के अनुसार, एकादशी व्रत से पूर्व अर्थात दशमी तिथि को दांपत्य संबंध एवं सहवास से पूर्णतः विरत रहना चाहिए। सहवास करने से शरीर एवं मन दोनों अशुद्ध हो जाते हैं, जिससे एकादशी व्रत की पवित्रता भंग होती है। व्रत का प्रमुख उद्देश्य इंद्रिय संयम एवं आत्मसंयम के माध्यम से शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त करना है। अतः व्रत के पूर्व दिवस से ही संयम का पालन करना परम आवश्यक है।
एकादशी के दिन पालन करने योग्य कुछ विशेष सावधानियाँ
एकादशी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। यदि इन नियमों का ध्यान रखा जाए, तो व्रत अधिक पवित्र और फलदायी होता है। एकादशी के दिन निम्नलिखित सावधानियों का पालन करें—
- रक्तस्राव से बचाव करें
- एकादशी के दिन सब्जी या फल काटते समय विशेष सावधानी बरतें ताकि किसी भी प्रकार से रक्तस्राव न हो। इस दिन रक्तस्राव वर्जित माना गया है, और यदि ऐसा होता है, तो व्रत की पूर्णता भंग हो सकती है।
- सौंदर्य प्रसाधनों का त्याग करें
- इस दिन शरीर और बालों पर किसी भी प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन जैसे—तेल (शरीर व सिर में), इत्र, परफ्यूम, साबुन, शैम्पू आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- सभी प्रकार के क्षौर कर्म वर्जित हैं
- एकादशी के दिन किसी भी प्रकार के क्षौर कर्म नहीं करने चाहिए, जैसे—बाल, दाढ़ी, मूंछ और नाखून काटना।
- संयम एवं पवित्रता बनाए रखें
- व्रत की शुद्धता बनाए रखने के लिए इस दिन असत्य भाषण, क्रोध, हिंसा, छल-कपट, निंदा, परचर्चा और अन्यायपूर्ण कार्यों से दूर रहें। साथ ही, दांपत्य संबंध से भी बचना चाहिए।
इन नियमों का पालन करने से एकादशी व्रत और अधिक पावन और फलदायी सिद्ध होगा।

एकादशी में उपवास के प्रकार
एकादशी के दिन उपवास रखना अनिवार्य माना गया है। उपवास के विभिन्न प्रकार होते हैं। मुख्य रूप से एकादशी में चार प्रकार के उपवास प्रचलित हैं— निर्जल, दुग्धाहार, फलाहार और अनुकल्प।
- निर्जल उपवास
- इस उपवास में पूर्ण रूप से जल एवं आहार का त्याग किया जाता है। यह दो प्रकार का होता है— निर्जला एवं सजला।
निर्जला एकादशी सबसे श्रेष्ठ व्रत मानी जाती है, इसमें जल का भी सेवन नहीं किया जाता।
सजला उपवास में हल्का गुनगुना जल, शरबत या गर्म जल में नींबू मिलाकर पी सकते हैं।
- इस उपवास में पूर्ण रूप से जल एवं आहार का त्याग किया जाता है। यह दो प्रकार का होता है— निर्जला एवं सजला।
- दुग्धाहार उपवास
- इस प्रकार के उपवास में दिन में एक या दो बार बिना क्रीम का दूध ग्रहण किया जा सकता है।
देशी गाय का दूध सर्वोत्तम माना गया है, क्योंकि यह स्वास्थ्य व दीर्घायु प्रदान करता है। गौमाता का दूध श्रेष्ठ आहार माना गया है।
- इस प्रकार के उपवास में दिन में एक या दो बार बिना क्रीम का दूध ग्रहण किया जा सकता है।
- फलाहार उपवास
- इस उपवास में केवल फल एवं फल रस का सेवन किया जाता है।
एकादशी व्रत के लिए अंगूर, अनार और पपीता अत्यंत लाभदायक होते हैं।
- इस उपवास में केवल फल एवं फल रस का सेवन किया जाता है।
- अनुकल्प उपवास
- जो लोग कठोर उपवास रखने में असमर्थ होते हैं, वे अल्प मात्रा में जल, दूध, फल या पंचगव्य का सेवन कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, एकादशी में निषिद्ध सब्जियों को छोड़कर भगवान को भोग लगाकर प्रसाद स्वरूप आहार ग्रहण किया जा सकता है।
शास्त्रों के अनुसार, जल, फल, दूध, घी और औषधि के सेवन से व्रत भंग नहीं होता। किंतु अत्यधिक अशक्त अवस्था में वैकल्पिक उपायों की अनुमति दी गई है।
- जो लोग कठोर उपवास रखने में असमर्थ होते हैं, वे अल्प मात्रा में जल, दूध, फल या पंचगव्य का सेवन कर सकते हैं।
सेब का सेवन उचित नहीं माना गया है, क्योंकि इसके संरक्षण की प्रक्रिया शास्त्रसम्मत नहीं होती।
एकादशी व्रत पालन की विधि और मुख्य प्रक्रिया
एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात अपने घर के इष्ट देवता के समक्ष जाकर एकादशी संकल्प मंत्र का पाठ करें।
एकादशी में शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। इस दिन निराहार व्रत रखना श्रेष्ठ माना जाता है, अर्थात् दिनभर अन्न-जल का त्याग करें। यदि यह संभव न हो, तो कम से कम पंच रजस्य पदार्थों (अन्न, दाल, मसाले, लहसुन-प्याज, और तामसिक भोजन) का त्याग करें। एकादशी के दिन फलाहार या केवल जल ग्रहण करने का भी विधान है। एकादशी व्रत के चार प्रमुख प्रकार होते हैं, जिनमें से किसी एक का पालन किया जा सकता है।
संकल्प मंत्र:
“एकादश्यां निराहारः स्थित्वा अहं अपरेहनि।
भक्षयामि पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत॥”
इस व्रत के माध्यम से मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है, और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
एकादशी व्रत के प्रमुख कार्य एवं पूजा तथा रात्रि जागरण विधि
एकादशी व्रत का पालन करने का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की निरंतर भक्ति, पूजा-अर्चना एवं कीर्तन करना होता है। इस विशेष दिन पर उपवास रखते हुए मौन रहना, अर्थात परिवार एवं अन्य जनों से अत्यधिक बातचीत न करना, अति उत्तम माना गया है। दिनभर भगवद गीता का पाठ, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का जप, एकादशी महात्म्य का श्रवण एवं हरिनाम संकीर्तन तथा हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है। उचित समय पर धूप, दीप, पुष्प, फल एवं नैवेद्य अर्पित कर भगवान श्रीहरि की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए। संपूर्ण समर्पण और मौन रहकर ईश्वर की आराधना करने से श्रेष्ठतम फल की प्राप्ति होती है।
इसके अतिरिक्त, एकादशी की रात जागरण कर भगवान विष्णु का नाम-स्मरण एवं संकीर्तन करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। जो रात्रि जागरण करने में असमर्थ हों, वे कम से कम अधिक समय तक भजन-कीर्तन एवं प्रार्थना द्वारा भगवान को स्मरण करें। एकादशी व्रत के पूर्ण होने पर द्वादशी तिथि में विधिपूर्वक पारण करना आवश्यक होता है। इन समस्त विधानों का पालन करने से भगवान विष्णु की अपार कृपा प्राप्त होती है।
एकादशी पारण मंत्र और नियम
द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद निर्धारित समय के भीतर एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए। यदि आप निर्जला एकादशी व्रत कर रहे हैं, तो द्वादशी के पारण समय में चरणामृत द्वारा व्रत का पारण करें। यदि आपने फलाहार या अनुकल्प रूप में एकादशी व्रत किया है, तो द्वादशी के पारण समय में अन्न प्रसाद द्वारा व्रत का पारण करें। सही समय पर पारण करने से ही एकादशी व्रत पूर्ण होता है। यदि महाद्वादशी तिथि उपस्थित हो, तो एकादशी के स्थान पर महाद्वादशी तिथि में ही व्रत पालन करने का नियम है।
पारण के समय उच्चारित किए जाने वाले मंत्र
- एकादशी व्रत पारण मंत्र:
“ॐ विष्णु र्विष्णु र्विष्णुः! मम एकादश्यामुपवासं परिपूर्णं भवत्विति।।”
हिन्दी अर्थ: हे विष्णु! हे सर्वव्यापी प्रभु! मैंने एकादशी का उपवास रखा, अब इसका पारण कर रहा हूँ। कृपया इस व्रत को सफल बनाएं। - शास्त्रानुसार पारण मंत्र:
“पुण्याहं पारयामि व्रतसिद्धिः भवत्विति।।”
हिन्दी अर्थ: मैं इस पुण्यमय व्रत का पारण कर रहा हूँ, भगवान इस व्रत की सिद्धि प्रदान करें। - एकादशी पारण के समय भगवान विष्णु को अर्पण करने का मंत्र:
“ॐ नमो नारायणाय नमः।।”
हिन्दी अर्थ: भगवान नारायण को साष्टांग प्रणाम। - पारण से पूर्व अन्न ग्रहण करने से पहले अर्पण मंत्र:
“अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति।।”
हिन्दी अर्थ: हे माता अन्नपूर्णा! आप सदा परिपूर्ण हैं, भगवान शंकर की प्रिय हैं। ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि हेतु मुझे यह अन्न प्रदान करें। - पारण के बाद कृतज्ञता एवं क्षमा प्रार्थना मंत्र:
“क्षान्तं मया कृतं यदक्षमतया।
गोविन्द गोविन्द हरे माधव।।”
हिन्दी अर्थ: यदि मुझसे कोई भूल हुई हो, तो हे गोविंद! हे माधव! कृपया क्षमा करें।
यह मंत्र पारण के समय उच्चारित करने से व्रत पूर्णता को प्राप्त होता है और भगवान की कृपा बनी रहती है।
एकादशी व्रत में दान-पुण्य का महत्त्व
एकादशी में दान-पुण्य – एकादशी के दिन दान-पुण्य का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी के अगले दिन पारण के पश्चात, अपनी सामर्थ्य के अनुसार निर्धन, ब्राह्मण एवं जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करने से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन किए गए दान का फल कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है और यह जन्म-जन्मांतर तक कल्याणकारी सिद्ध होता है। अतः, एकादशी व्रत के समापन के उपरांत सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करना चाहिए, क्योंकि यह आत्मशुद्धि एवं ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का एक प्रमुख साधन है।
निष्कर्ष
एकादशी व्रत केवल शरीर को शुद्ध करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह आत्मा को भी आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध करता है। श्रद्धा और समर्पण के साथ यह व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।