गीता पढ़ने का सही तरीका: जानिए कब, कैसे और क्यों पढ़ें – अद्भुत लाभ जो बदल सकते हैं आपका जीवन!

गीता पढ़ने का सही तरीका

श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व

गीता पढ़ने का सही तरीका: श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन को सही दिशा देने वाला दिव्य मार्गदर्शक है। यह हमें धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान का सही अर्थ समझाती है और जीवन की हर परिस्थिति में मार्गदर्शन करती है। गीता के उपदेश किसी एक धर्म या संप्रदाय के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए हैं।

लेकिन कई लोग इसे पढ़ने का सही तरीका नहीं जानते, जिसके कारण वे इसके गूढ़ रहस्यों को पूरी तरह से समझ नहीं पाते। गीता का अध्ययन यदि सही विधि से किया जाए, तो यह हमारे जीवन को संपूर्णता प्रदान कर सकती है और हमें मानसिक शांति, आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाती है। आइए जानते हैं गीता पढ़ने के सही तरीके और इसके अद्भुत लाभों के बारे में।

विषय सूची


श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने से पहले ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें

1. शुद्ध शरीर और मन से गीता पढ़ें

गीता का अध्ययन करने से पहले मन और शरीर की शुद्धि आवश्यक होती है। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने से हमारा मन और शरीर पवित्र होता है, जिससे हम गीता के दिव्य ज्ञान को गहराई से आत्मसात कर सकते हैं। शुद्ध मन से गीता पढ़ने पर इसका प्रभाव अधिक गहरा होता है और हम आध्यात्मिक रूप से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

2. गीता पढ़ने के लिए पवित्र और शांत स्थान चुनें

गीता का अध्ययन करने के लिए एक शांत और पवित्र स्थान चुनना बहुत आवश्यक है। मंदिर, पूजा कक्ष, या घर का कोई कोना जहाँ शांति बनी रहती हो, वह स्थान सबसे उपयुक्त होता है। यदि वातावरण शुद्ध और शांत होगा, तो गीता पढ़ने में ध्यान केंद्रित करना आसान होगा और हम इसके गहरे अर्थों को समझने में सक्षम होंगे। बाहरी शोर-शराबे और ध्यान भटकाने वाले तत्वों से बचकर ही गीता का अध्ययन करना चाहिए।

3. शुभ समय पर गीता पढ़ें

ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे)

ब्रह्म मुहूर्त में गीता पढ़ना सबसे उत्तम माना जाता है। इस समय मन पूरी तरह से शांत और ग्रहणशील रहता है, जिससे गीता के श्लोकों को समझना और आत्मसात करना अधिक प्रभावी होता है।

संध्याकाल (सूर्यास्त के समय)

संध्याकाल का समय भी गीता पढ़ने के लिए उपयुक्त होता है। इस समय गीता पढ़ने से मानसिक शांति मिलती है और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। दिनभर की व्यस्तता के बाद गीता का अध्ययन मन को स्थिर करने में सहायक होता है।

रात को सोने से पहले

यदि दिनभर व्यस्तता के कारण गीता पढ़ने का समय नहीं मिल पाता है, तो रात को सोने से पहले कुछ श्लोकों का अध्ययन करना लाभकारी होता है। इससे मानसिक शांति मिलती है और दिनभर के तनाव से मुक्ति मिलती है।

4. नियमितता बनाए रखें

गीता के अध्ययन में निरंतरता बनाए रखना बहुत जरूरी है। हर दिन थोड़ा-थोड़ा पढ़ना अधिक लाभदायक होता है, बजाय इसके कि कभी-कभी अधिक मात्रा में पढ़ा जाए। नियमित रूप से गीता का अध्ययन करने से धीरे-धीरे हमें इसके गूढ़ ज्ञान की समझ होने लगती है और हम अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस करते हैं।

5. अर्थ और भावार्थ को समझें

केवल संस्कृत श्लोक पढ़ने से ही गीता का पूरा लाभ नहीं मिल सकता। यदि हम इसके अर्थ और भावार्थ को सही से नहीं समझेंगे, तो इसका अध्ययन अधूरा रह जाएगा। इसलिए, गीता पढ़ते समय प्रमाणित अनुवाद और व्याख्या का सहारा लेना आवश्यक है। गीता का वास्तविक उद्देश्य तभी पूरा होता है, जब हम इसके संदेश को समझकर अपने जीवन में उतारें।

6. चिंतन और मनन करें

गीता केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि जीवन में लागू करने के लिए है। प्रत्येक श्लोक में एक गहरा अर्थ छिपा होता है, जिसे समझना और आत्मसात करना जरूरी है। गीता के उपदेशों पर चिंतन और मनन करने से हमारे विचारों में स्पष्टता आती है और हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं।


गीता पाठ शुरू करने से पहले करने योग्य कार्य

गीता पाठ करने से पूर्व शुद्धता का पालन करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। आचमन, विष्णु स्मरण, स्वस्तिवाचन, संकल्प एवं आसन शुद्धि के बाद नीचे दिए गए मंत्रों का पाठ करें।

मंत्रों का उच्चारण और करन्यास विधि

  • ओम् अस्य श्रीमद्भगवद्गीतामाला-मंत्रस्य श्रीभगवान् छन्दः श्रीकृष्णः परमात्मा देवता वेदव्यास ऋषिरनुष्टुप्।
  • “अशोच्यानन्वशोचस्तं प्रज्ञावादांश्च भाषसे” – इति बीजम्।
  • “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज” – इति शक्ति।
  • “अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः” – इति कीलकम्।
  • अब दोनों हाथों की तर्जनी उँगली से अंगूठे को स्पर्श करें और निम्न मंत्र का जाप करें: “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः” – अंगुष्ठाभ्यां नमः।
  • इस मंत्र को पढ़कर पुनः उसी प्रकार अंगुष्ठ द्वारा उसकी तर्जनी को स्पर्श करते हुए। “न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः” – तर्जनीभ्यां स्वाहा। “अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च” – मध्यमाभ्यां वषट्।
  • अब अंगुष्ठ द्वारा अनामिका का स्पर्श करते हुए इस मंत्र का जाप करें। “नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः” – अनामिकाभ्यां हूं।
  • अब अंगुष्ठ द्वारा कनिष्ठा का स्पर्श करते हुए इस मंत्र का जाप करें। “पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः” – कनिष्ठाभ्यां बौषट्।
  • इस मंत्र का पाठ करते हुए दाहिने हाथ की हथेली से बाएँ हाथ की हथेली को घेरते हुए— “नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च” – करतल-पृष्ठाभ्यां अस्त्राय फट्। अब बाएँ हाथ की हथेली पर दाएँ हाथ की हथेली रखकर ताली बजाएँ। यह करन्यास की विधि पूर्ण हुई।

अब अंगन्यास करें।

  • “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः” – हृदयाय नमः। इस मंत्र का पाठ करके दाएं हाथ से हृदय स्पर्श करें।
  • “न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः” – शिरसे स्वाहा। इस मंत्र का पाठ करके मस्तक स्पर्श करें।
  • “अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च” – शिखायै वषट्। इस मंत्र का पाठ करके शिखा को स्पर्श करें।
  • “नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः” – कवचाय हूं। इस मंत्र का पाठ करके कवच को स्पर्श करें।
  • “पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः” – नेत्रत्रयाय बौषट्। इस मंत्र का पाठ करके नेत्रद्वय और भ्रूमध्य स्पर्श करें।
  • इस के बाद “नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च” – अस्त्राय फट्। इस मंत्र को पढ़कर ताली बजाइए। इसका नाम अंगण्यास है।

अब गणेश, पंचदेवता, और श्रीकृष्ण का पूजन करें तथा मंगलाचरण श्लोकों का पाठ करने के बाद गीता पाठ प्रारंभ करें।

गीता पढ़ने का सही तरीका

गीता पढ़ने का तरीका सरल में

यदि उपरोक्त नियमों का पालन करना कठिन हो, तो आप इस सरल विधि से स भी गीता पढ़ कर सकते हैं:

स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, पवित्र स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। आचमन और विष्णु स्मरण करें इस मंत्रो का जाप करें।

  • “पहले हाथ जोड़कर ‘ॐ तत्सत्’ मंत्र का उच्चारण करें।
  • इसके बाद श्रीगुरुदेव का प्रणाम मंत्र: ‘ॐ अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुरुनमिलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।का जाप करें।
  • सरस्वती-व्यासादि प्रणाम मंत्र: ‘नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततोजयमुदीरयेत।’ का जाप करें।
  • श्रीकृष्ण प्रणाम मंत्र: ‘हे कृष्ण करुणा सिंधु दीनबन्धु जगत्पथे। गोपेगोपिका कान्ता राधा कान्ता नमः स्तुते। नमः ब्रह्मण्य देवाय गो ब्रह्मण्य हिताय च। जगद्धिताय श्रीकृष्णाय गोविन्दाय वासुदेवाय नमः नमः।’ का जाप करें।
  • राधारानी प्रणाम मंत्र: ‘तप्तकांचनगौरांगी राधे वृन्दावनेश्वरी। बृषभानुसुते देवी प्रणमामि हरिप्रिये।’ का जाप करें।
  • वैष्णव प्रणाम मंत्र: ‘वाञ्छाकल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।’ का जाप करें इसके बाद।

गीता पढ़ने की सही विधि

  • अध्याय की घोषणा करे: पाठ शुरू करने से पहले अध्याय का नाम और जो श्लोक आप पढ़ने वाले हैं, उनका उल्लेख करें। उदाहरण: “अथ श्रीमद्भगवद्गीता चौथा अध्याय, ज्ञानयोग ३८ श्लोक से ४२ श्लोक तक।”
  • इसके बाद श्लोक पढ़ें: “श्रीभगवान उवाच: हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते । तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।”
  • इसके बाद अनुवाद पढ़ें: श्लोक का हिंदी अनुवाद पढ़ें। “इस संसार में दिव्यज्ञान से पवित्र कुछ भी नहीं है। जो व्यक्ति लंबे समय तक योग का अभ्यास करके अपने मन को शुद्ध करता है, वह सही समय पर अपने हृदय में इस ज्ञान का अनुभव करता है।”
  • अर्थ और व्याख्या: पाठ के बाद श्लोक का गहरा अर्थ समझने की कोशिश करें और सोचें कि इसे जीवन में कैसे लागू किया जा सकता है।”

गीता पाठ समाप्ति के नियम

  • गीता का श्लोक और अनुवाद पढ़ें बाद श्रीमद्भगवद्गीता के 18 पवित्र नामों का पाठ करें:
    “ॐ गंगा, गीता च, सावित्री, सीता, सत्य, पतिव्रता, ब्रह्मविद्या, गायत्री, तत्त्वरत्न, शास्त्रसंघाति, मुक्तिगेहिनी, तत्त्वमयी, अंबा, वेदविद्या, परमशांति, नित्यज्ञान, योगविद्या, आत्मबोधिनी।”
  • पंचतत्त्व और हरे कृष्ण महामंत्र का पाठ करें:
    “श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौरभक्तवृंद। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।”
  • क्षमा प्रार्थना मंत्र का पाठ करें:
    “यदक्षरं परिभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्। पूर्णं भवतु तत्सर्वं तत्त्व प्रसादात् जनार्दनः।”
  • शांति मंत्र का पाठ करें:
    “ॐ सर्वे सुखिनः सन्तु, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।”

गीता पाठ के दौरान ध्यान देने योग्य बातें

  • शुद्ध उच्चारण का प्रयास करें, लेकिन श्रद्धा ही सर्वोपरि है।
  • प्रतिदिन एक अध्याय पढ़ने का प्रयास करें, यदि संभव न हो तो कुछ श्लोक भी पर्याप्त हैं।
  • मन को शांत रखें और पूरे ध्यान से गीता का पाठ करें।
  • गीता के ज्ञान को केवल पढ़ने तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपने जीवन में अपनाएँ।
  • गीता के गहरे अर्थ को समझने के लिए किसी गुरु या अनुभवी व्यक्ति की सहायता लें।

गीता पढ़ने के चमत्कारी लाभ

1. मानसिक शांति और संतुलन

गीता का अध्ययन करने से मन में शांति और स्थिरता आती है। यह हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देती है और हमें मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। गीता पढ़ने से हम हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना सीखते हैं।

2. आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति

गीता हमें आत्मा और परमात्मा के रहस्यों से परिचित कराती है। यह हमें सिखाती है कि हम केवल यह नश्वर शरीर नहीं, बल्कि एक अमर आत्मा हैं। जब हम इस सत्य को समझ जाते हैं, तो हमें अपने जीवन के सही उद्देश्य का ज्ञान होता है और हम आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ते हैं।

3. तनाव, भय और चिंता से मुक्ति

गीता के अनुसार आत्मा अजर-अमर है और मृत्यु केवल शरीर का परिवर्तन है। जब हम इस सत्य को गहराई से समझते हैं, तो हमारे अंदर से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और हम अनावश्यक चिंता से मुक्त हो जाते हैं। गीता पढ़ने से हमें यह एहसास होता है कि हर स्थिति में हमें धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए।

4. निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है

गीता हमें सही और गलत में भेद करना सिखाती है। जब हम गीता के उपदेशों का अध्ययन करते हैं, तो हमारी निर्णय लेने की क्षमता मजबूत होती है और हम जीवन के हर मोड़ पर सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। यह हमें आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाती है।

5. भक्ति, श्रद्धा और आत्मविश्वास बढ़ता है

नियमित रूप से गीता पढ़ने से हमारे मन में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति, श्रद्धा और आत्मविश्वास बढ़ता है। जब हम गीता के उपदेशों को अपनाते हैं, तो हमारे जीवन में सकारात्मकता आती है और हम अधिक आत्मनिर्भर बनते हैं।

6. कर्मयोग का मार्ग दिखाती है

गीता हमें निष्काम कर्मयोग का मार्ग दिखाती है, यानी बिना किसी फल की अपेक्षा के कर्म करने की प्रेरणा देती है। जब हम अपने कार्य को निष्काम भाव से करते हैं, तो हमारे कार्य अधिक प्रभावशाली और सफल होते हैं। गीता हमें यह सिखाती है कि हमें केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।


निष्कर्ष

श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन को दिशा देने वाली ज्ञान की अमृतधारा है। यदि इसे सही विधि से पढ़ा और समझा जाए, तो यह हमारे जीवन को संपूर्णता प्रदान कर सकती है। गीता का नियमित अध्ययन करने से हमारा मन, शरीर और आत्मा दिव्य ज्ञान से आलोकित होता है। गीता हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ आएं, हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहिए।

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अस्वीकरण

यह लेख धार्मिक और आध्यात्मिक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई पूजा विधि, मंत्र और अन्य जानकारियाँ प्राचीन शास्त्रों, लोक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा और सुविधा के अनुसार पूजा विधि अपनाएं। किसी भी प्रकार की धार्मिक क्रिया को करने से पहले योग्य पंडित या विद्वान से परामर्श लेना उचित होगा। इस लेख में दी गई जानकारी का उपयोग पाठक की स्वयं की जिम्मेदारी पर होगा।

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मैं गोपाल चन्द्र दास — सनातन धर्म में गहरी आस्था रखने वाला एक गर्वित सनातनी, साधक और समर्पित लेखक हूँ। मुझे अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक विरासत पर गर्व है। मेरा उद्देश्य है हिंदू धर्म की शुद्ध, प्रामाणिक और ग्रंथों पर आधारित जानकारी को सरल, सहज और समझने योग्य भाषा में हर श्रद्धालु तक पहुँचाना।मैं अपने लेखों के माध्यम से व्रत-त्योहारों की सही विधियाँ, पूजा-पद्धतियाँ, धर्मशास्त्रों के सार, और आध्यात्मिक जीवन जीने के मार्ग को प्रस्तुत करता हूँ — ताकि सनातन धर्म के अनुयायी बिना किसी भ्रम या संशय के सच्ची श्रद्धा और विधि-विधान से धर्म का पालन कर सकें।

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