
सरस्वती चालीसा आरती lyrics:भारतीय संस्कृति में देवी सरस्वती को विद्या, बुद्धि, ज्ञान और संगीत की देवी माना जाता है। उनकी कृपा से व्यक्ति को ज्ञान, विद्या, और विवेक की प्राप्ति होती है। सरस्वती चालीसा और आरती का पाठ कर श्रद्धालु उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। सरस्वती पूजन विशेष रूप से बसंत पंचमी के दिन किया जाता है, लेकिन विद्या प्राप्ति की इच्छा रखने वाले भक्त प्रतिदिन उनकी आराधना करते हैं।
श्री सरस्वती चालीसा आरती Lyrics हिंदी में
॥ दोहा ॥
जनक जननि पदम दुरज, निज मस्तक पर धारि ।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि ॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु ॥
श्री सरस्वती चौपाई
जय श्रीसकल बुद्धि बलरासी, जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ।
जय जय जय वीणाकर धारी, करती सदा सुहंस सवारी ।
रूप चर्तुभुजधारी माता, सकल विश्व अन्दर विख्याता ।
जग में पाप बुद्धि जब होती, तबही धर्म की फीकी ज्योति ।
तबहि मातु का निज अवतारा, पाप हीन करती महि तारा ।
बाल्मीकि जी थे हत्यारा, तब प्रसाद जानै संसारा ।
रामचरित जो रचे बनाई, आदि कवि पदवी को पाई ।
कालिदास जो भये विख्याता, तेरी कृपा दृष्टि से माता ।
तुलसी सूर आदि विद्वाना, भये और जो ज्ञानी नाना ।
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा, केवल कृपा आपकी अम्बा |
करहु कृपा सोई मातु भवानी, दुखित दीन निज दासहि जानी ।
पुत्र करई अपराध बहूता, तेहि न धरइ चित सुन्दर माता ।
राखु लाज जननि अब मेरी, विनय करु भाँति बहुतेरी ।
मैं अनाथ तेरी अवलंबा, कृपा करऊ जय जय जगदंबा ।
मधु कैटभ जो अति बलवाना, बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना ।
समर हजार पांच में घोरा, फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला, बुद्धि विपरीत भई खलहाला ।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी, पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ।
चंड मुण्ड जो थे विख्याता, छण महु संहारेउ तेहिमाता ।
रक्तबीज से समरथ पापी, सुरमुनि हृदय धरा सब काँपी ।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा, बार बार बिनऊं जगदंबा ।
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा, छण में वधे ताहि तू अम्बा ।
भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई, रामचन्द्र बनवास कराई ।
एहिविधि रावन वध तू कीन्हा, सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा ।
को समरथ तव यश गुन गाना, निगम अनादि अनंत बखाना ।
विष्णु रुद्र अज सकहिन मारी, जिनकी हो तुम रक्षाकारी ।
रक्त दन्तिका और शताक्षी, नाम अपार है दानव भक्षी ।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा, दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ।
दुर्ग आदि हरनी तू माता, कृपा करहु जब जब सुखदाता ।
नृप कोपित को मारन चाहै, कानन में घेरे मृग नाहै।
सागर मध्य पोत के भंजे, अति तूफान नहिं कोऊ संगे ।
भूत प्रेत बाधा या दुःख में, हो दरिद्र अथवा संकट में।
नाम जपे मंगल सब होई, संशय इसमें करइ न कोई।
पुत्रहीन जो आतुर भाई, सबै छाँडि पूजें एहि माई ।
करै पाठ नित यह चालीसा, होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ।
धूपादिक नवैद्य चढ़ावै, संकट रहित अवश्य हो जावै ।
भक्ति मातु की करें हमेशा, निकट न आवै ताहि कलेशा ।
बंदी पाठ करें सत बारा, बंदी पाश दूर हो सारा ।
रामसागर बाधि हेतु भवानी, कीजै कृपा दास निज जानी ।
॥ दोहा ॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप ।
डूबन से रक्षा करहु, परूँ न मैं भव कूप ॥
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु ।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही ददातु ॥
सरस्वती आरती का महत्व:
सरस्वती आरती देवी की स्तुति का एक रूप है, जिसे पूजन के अंत में गाया जाता है। आरती के शब्दों में देवी की महिमा का गुणगान किया जाता है और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है। सरस्वती आरती के दौरान दीप जलाकर भक्त श्रद्धा भाव से देवी की उपासना करते हैं।
श्री सरस्वती आरती लिरिक्स
आरती करूं सरस्वती मातु, हमारी हो भव भय हारी हो ।
हंस वाहन पदमासन तेरा, शुभ्र वस्त्र अनुपम है तेरा ।
रावण का मन कैसे फेरा, वर मांगत वन गया सबेरा ।
यह सब कृपा तिहारी, उपकारी हो मातु हमारी हो ।
तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो, हम अम्बुजन विकास करती हो।
मंगल भवन मातु सरस्वती हो, बहुमूकन वाचाल करती हो ।
विद्या देने वाली वीणा, धारी हो मातु हमारी ।
तुम्हारी कृपा गणनायक, लायक विष्णु भये जग के पालक ।
अम्बा कहायी सृष्टि ही कारण, भये शम्भु संसार ही घालक ।
बन्दों आदि भवानी जग, सुखकारी हो मातु हमारी ।
सदबुद्धि विद्याबल मोही दीजै, तुम अज्ञान हटा रख लीजै ।
जन्मभूमि हित अर्पण कीजै, कर्मवीर भस्महिं कर दीजे ।
ऐसी विनय हमारी भवभय, हरी, मातु हमारी हो, आरती करूं सरस्वती मातु ॥
आरती के माध्यम से भक्त अपनी भक्ति और समर्पण प्रकट करते हैं और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
उपसंहार:
सरस्वती चालीसा और आरती का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में ज्ञान, बुद्धि और शांति का संचार होता है। यह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने और जीवन को सही दिशा देने का एक माध्यम भी है। विद्यार्थियों, विद्वानों, संगीतकारों और कलाकारों को विशेष रूप से सरस्वती चालीसा और आरती का पाठ करना चाहिए ताकि वे अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकें।
“जो करे सरस्वती की आराधना, वह पावे बुद्धि की साधना।”