श्री हनुमान चालीसा हिंदी अर्थ सहित: हिंदू धर्म में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले स्तोत्रों में से एक है हनुमान चालीसा। इसे तुलसीदास गोस्वामी जी ने अवधी भाषा में लिखा है। हनुमान चालीसा के पाठ से भय, बाधा, रोग, शोक, संकट और नकारात्मकता दूर होती है। इस लेख में हम हनुमान चालीसा का श्लोक और उसका सरल हिंदी अर्थ प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे हर भक्त इसका गूढ़ अर्थ आसानी से समझ सके।

हनुमान चालीसा पाठ विधि (कैसे करें पाठ)
हनुमान चालीसा का पाठ करने से पूर्व स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शांत मन से भगवान श्रीराम और हनुमान जी का ध्यान करें। पाठ के लिए सुबह ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) का समय सर्वोत्तम माना जाता है, हालांकि आप श्रद्धा से दिन में किसी भी समय पाठ कर सकते हैं। पूजा स्थान पर दीपक जलाकर, यदि संभव हो तो गुलाब या सिंदूर अर्पित करके, श्रद्धा एवं भक्ति भाव से बूंदी के लड्डू, गुड़ तथा चने का भोग अर्पित करें। हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें। फिर श्रीगणेश वंदना के बाद हनुमान चालीसा का श्रद्धा एवं एकाग्रता के साथ पाठ करें। पाठ करते समय हर चौपाई के भाव को समझने का प्रयास करें — इससे मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। सप्ताह में मंगलवार और शनिवार विशेष फलदायी माने जाते हैं हनुमान चालीसा का पाठ ।
हनुमान चालीसा के चालीस श्लोक और उनका हिंदी अर्थ
हनुमान चालीसा का दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥
अर्थ – अपने गुरु के पवित्र चरणों की कृपा से मन को शुद्ध कर, मैं श्री रघुवर को प्रणाम करता हूँ और उनके दिव्य गुणों का वर्णन करता हूँ, जो आत्मा को धर्म, सदाचार, आंतरिक संतोष और परम मुक्ति की ओर प्रेरित करते हैं।”
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
अर्थ – हे पवनपुत्र हनुमान! मैं अल्पबुद्धि हूँ, इसलिए आपकी शरण लेता हूँ। कृपा कर मुझे बल, बुद्धि और सच्चा ज्ञान दें, और मेरे सभी दुखों और दोषों को दूर करें।
हनुमान चालीसा का चौपाई
1. जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
अर्थ – हे हनुमान! आपको कोटि-कोटि नमन, आप अनंत ज्ञान के मूर्तिमान स्वरूप हैं। हे कपिश! आप ही बल, बुद्धि और दिव्य शक्ति (शिव-शक्ति) के आदि स्रोत हैं। आपकी तेजस्विता से त्रिलोक प्रकाशित होता है – संपूर्ण सृष्टि आपके तेज से आलोकित हो रही है।
2. राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
अर्थ – आप शक्ति और भक्ति के दिव्य प्रतीक हैं, जो श्रीराम के परम भक्त और विश्वस्त दूत के रूप में जाने जाते हैं। पवन देव द्वारा प्रदत्त असीम सामर्थ्य से सम्पन्न, आप अंजनी माता के पराक्रमी पुत्र हैं।
3. महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
अर्थ – आपके अंग इंद्र के वज्र के समान दृढ़ और शक्तिशाली हैं, जो आपकी अनुपम वीरता और साहस को दर्शाते हैं। आप प्रखर बुद्धि और दिव्य ज्ञान से संपन्न हैं, और नकारात्मकता व दुष्ट विचारों के अंधकार को नष्ट करते वाले हैं।
4. कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
अर्थ – आपका स्वरूप सुनहरे तेज से दमकता है, सुशोभित वस्त्रों से सुसज्जित है। आपके कानों में चमकदार कुंडल झिलमिलाते हैं, और आपके घुंघराले बाल आपकी शोभा में चार चाँद लगा देते हैं।
5. हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
अर्थ – आपके हाथों में विजय का प्रतीक केसरिया ध्वज और वज्र सुशोभित है, और आपके कंधे पर पवित्र जनेऊ (पवित्र धागा) शोभा पा रहा है।
6. संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥
अर्थ – हे श्री हनुमान! आप भगवान शंकर के अंशरूप एवं केसरी पुत्र होकर अपने कुल की मर्यादा और महिमा को उजागर करते हैं। आपकी दिव्य तेज, पराक्रम और प्रभाव से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में आपकी वंदना करता है।”
7. विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
अर्थ – आप विद्वान, गुणी, अत्यंत चतुर, और सद्गुणों के भंडार हैं, सर्वथा सिद्ध और सम्पूर्ण, तथा श्रीराम के आदेशों के पालन हेतु सदा तत्पर रहते हैं।
8. प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
अर्थ – आप सच्चे भक्त हैं, जो सदा श्रीराम के पावन चरित्र की कथा सुनने को उत्सुक रहते हैं। आपका हृदय उनके आदर्शों से गहराई से जुड़ा हुआ है। आपकी इस निर्मल भक्ति के कारण आप सदैव श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के हृदय में स्थान पाते हैं।
9. सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
अर्थ – आप लघु और विनम्र रूप धारण कर माता सीता के समक्ष पहुंचे और अत्यंत श्रद्धा के साथ उनसे संवाद किया। पश्चात, आपने अपना विकराल रूप प्रकट किया और सम्पूर्ण लंका को अग्नि की ज्वालाओं से जला दिया।
10. भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
अर्थ – भीम जैसी भयंकर रूप धारण करके आपने असुरों का संहार किया और भगवान श्रीराम द्वारा सौंपे गए प्रत्येक कार्य को अटूट भक्ति और अद्वितीय कौशल के साथ पूर्ण किया।
11. लाय संजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
अर्थ – चमत्कारी संजीवनी बूटी लाकर आपने लक्ष्मण जी को मृत्यु के मुख से वापस जीवन दान दिया। यह देख प्रभु श्रीराम (रघुवीर) हर्ष से भर उठे और भाव-विभोर होकर आपको हृदय से लगा लिया।
12. रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
अर्थ – भगवान रघुपति (श्रीराम) ने पूरे मन से आपके गुणों की सराहना की और कहा — ‘जैसे भरत मेरे हृदय में बसते हैं, वैसे ही तुम भी मेरे लिए उतने ही प्रिय हो।
13. सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
अर्थ – जब देखा कि आपकी महिमा का गुणगान असंख्य प्राणी कर रहे हैं; तब श्रीराम ने प्रेमपूर्वक हृदय से लगा लिया।
14. सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
अर्थ – ऋषि सनकादिक, ब्रह्मा जी, महर्षि नारद, माता सरस्वती और शेषनाग जैसे महान और दिव्य सत्ता भी आपकी महिमा का गुणगान करते हैं।
15. यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
अर्थ – जब मृत्यु के देवता यमराज, धन के स्वामी कुबेर, और चारों दिशाओं की रक्षा करने वाले दिकपाल तक आपकी महिमा का गुणगान करने के लिए एक-दूसरे से होड़ करते हैं, तो मुझ जैसा साधारण कवि भला आपके परम गौरव का वर्णन शब्दों में कैसे कर सकता है?
16. तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
अर्थ – आपने सुग्रीव की सहायता करते हुए उन्हें श्रीराम से मिलवाया, जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीराम ने उन्हें उनका खोया हुआ राज्य सिंहासन पुनः दिलवाया।
17. तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
अर्थ – यह आपके उपदेश का ही फल था कि विभीषण ने लंका का सिंहासन प्राप्त किया — यह सत्य तीनों लोकों में स्वीकार किया गया है।
18. जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ – आपने तेजस्वी सूर्य को मीठा फल समझकर, हजारों योजन दूर होने पर भी एक ही छलांग में वहाँ पहुँचकर उसे निगल लिया।
19. प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥
अर्थ – प्रभु श्रीराम की अंगूठी को मुख में रखकर जब आपने समुद्र पर छलांग लगाई, तब उसका पार हो जाना तो बस आपकी भक्ति और पराक्रम का प्रमाण था, कोई आश्चर्य नहीं।”
20. दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
अर्थ – संसार के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपकी करुणा और कृपा से सहजता से पूर्ण हो जाते हैं।

21. राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
अर्थ – आप स्वयं, श्रीराम के पवित्र धाम के द्वार पर प्रहरी बनकर विराजते हैं। आपकी आज्ञा के बिना वहाँ किसी का प्रवेश असंभव है।
22. सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
अर्थ – संसार के सभी सुख आपके चरणों में समाहित हैं, और आपके शरण में आने वाले सभी भक्त आपकी कृपा को सभी सुख मिलते हैं। जब आप रक्षक हों तो फिर किसी का भय नहीं रहता।
23. आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
अर्थ – आप स्वयंसिद्ध हैं, अपने तेज को आप स्वयं सँभालते हैं। जब आप गर्जना करते हैं, तो आपकी उस महाप्रचंड हुंकार से तीनों लोक—स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल—काँप उठते हैं।
24. भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
अर्थ – जब कोई श्रद्धा से “महाबीर” का नाम उच्चारण करता है, तब भूत-पिशाच और नकारात्मक शक्तियाँ उसके पास नहीं आ सकते। हनुमानजी की कृपा से वह सदा सुरक्षित रहता है।
25. नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
अर्थ – जो भक्त श्रद्धा और भक्ति से निरंतर आपके पवित्र नाम का जाप करता है, उसकी सभी पीड़ाएँ और रोग आपकी कृपा से दूर हो जाते हैं, और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
26. संकट से हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
अर्थ – जो भक्त मन वचन और कर्म से निष्ठा पूर्वक आपका ध्यान करता है, आप उसे सभी बाधाओं और संकटों से बाहर निकालते है, और सुख शांति प्रदान करते हैं।
27. सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
अर्थ – श्रीराम तपस्वी राजाओं में परम श्रेष्ठ हैं — वे धर्म, त्याग और मर्यादा की मूर्ति हैं। आपने अपने समर्पण, सेवा और भक्ति से उनके सभी कार्यों को पूर्ण किया, उनकी प्रत्येक इच्छा को सफल बनाया। आपकी निष्काम भक्ति से प्रभु श्रीराम सदैव प्रसन्न रहते हैं।”
28. और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥
अर्थ – जो भी भक्त सच्चे मन से कोई भी इच्छा लेकर आपकी भक्ति करता है, उसे आपकी कृपा से मनोवांछित फल अवश्य मिलता है, और वो असीम फल की प्राप्ति करता है।
29. चारों जुग परताप तुम्हारा।
है प्रसिद्ध जगत उजियारा॥
अर्थ – आपका प्रताप चारों युगों में समान रूप से व्याप्त है, और आपकी दिव्य कीर्ति के प्रकाश से समस्त संसार आलोकित हो रहा है।
30. साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अर्थ – आप संपूर्ण साधु-संतों के रक्षक, दुष्ट और अधर्मी असुरों का संहार करने वाले, धर्म की मर्यादा को स्थापित करने वाले, और भगवान श्रीराम के अत्यंत प्रिय, निष्ठावान एवं सेवाभावी परम भक्त हैं।
31. अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
अर्थ – आपको माता सीता जी का ऐसा महान आशीर्वाद प्राप्त हुआ है कि आप अष्टसिद्धियों और नव निधियों के दिव्य दाता बन गए हैं, जो अपने भक्तों को अनंत संपत्ति, शक्ति और सिद्धि प्रदान करते हैं।
32. राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
अर्थ – आपके पास श्रीराम नाम रूपी अमृतमयी औषधि है, जो समस्त दुखों का नाश करने वाली है, और आप सदा अपने तन-मन से श्रीराम की भक्ति में लीन रहकर उनके परम दास बने रहते हैं।
33. तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अर्थ – आपके पावन भजन से ही भक्तों को श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है, और जन्म-जन्मांतर के संचित दुख और कष्ट स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।
34. अंत काल रघुवर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
अर्थ – यदि कोई व्यक्ति अंत समय में श्रीराम का नाम लेता है और उन्हें स्मरण करता है, तो वह श्रीराम के दिव्य लोक को प्राप्त करता है, और वह अगले जन्म में हरि-भक्त के रूप में इस धरती पर जन्म लेता है।
35. और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
अर्थ – जब मन एकनिष्ठ होकर केवल हनुमान जी की भक्ति में लीन होता है, तब अन्य किसी देवता की ओर ध्यान नहीं जाता, और उनकी सेवा से सभी प्रकार के सुख सहज से ही प्राप्त हो जाते हैं।
36. संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अर्थ – जब कोई भक्त सच्चे मन और श्रद्धा से बलशाली हनुमान जी का स्मरण करता है, तो उसके जीवन के सभी संकट, पीड़ाएँ और दुख धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं। हनुमान जी की कृपा से जीवन में शांति, सुरक्षा और साहस का संचार होता है।
37. जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
अर्थ – हे अंजनीसुत महावीर हनुमान जी! आपकी जय हो, आपकी अनंत कृपा को शत-शत नमन। मैं आपकी शरण में आया हूँ, कृपया मुझे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करें और मुझे जीवन के मार्ग में चलने के लिए ज्ञान, विवेक और अडिग शक्ति प्रदान करें।
38. जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
अर्थ – जो भक्त श्रद्धा से हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त होकर परम सुख और शांति को प्राप्त करता है। श्री हनुमान जी की कृपा से उसके जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं।
39. जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
अर्थ – जो भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति से नियमित रूप से हनुमान चालीसा की चालीस चौपाइयों का पाठ करता है, उसे भगवान की दिव्य कृपा अवश्य प्राप्त होती है — इसकी पुष्टि स्वयं भगवान शिव ने की है।
40. तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
अर्थ – तुलसीदास सदैव भगवान श्रीहरि के परम भक्त तथा उनके चरणों में निष्ठा से जुड़े सेवक बने रहें। हे प्रभु! कृपया कर मेरे हृदय में सदा के लिए निवास कीजिए, जिससे मेरा मन सदा आपकी भक्ति में अनुरक्त रहे और मैं आपके चरणों की सेवा में जीवन व्यतीत कर सकूँ।”
श्री हनुमान चालीसा हिंदी अर्थ सहित के दोहा (समापन)
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
अर्थ – हे पवनपुत्र हनुमान! आप समस्त संकटों का नाश करने वाले, मंगल के साक्षात स्वरूप हैं। आपकी कृपा से ही जीवन में शांति, भक्ति और साहस का संचार होता है। मैं विनम्र प्रार्थना करता हूँ कि आप श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी सहित मेरे हृदय में सदा के लिए निवास करें, और अपने दिव्य आशीर्वाद से मेरा मार्गदर्शन करें और मेरे जीवन को धर्म, भक्ति और सफलता से परिपूर्ण करें।
हनुमान चालीसा का पाठ करने के लाभ
- भय और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।
- शारीरिक और मानसिक बल प्राप्त होता है।
- आत्मविश्वास और एकाग्रता में वृद्धि होती है।
- भगवान श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
हनुमान चालीसा केवल एक स्तोत्र नहीं है, बल्कि यह आत्मबल, श्रद्धा और अनन्य भक्ति का अद्भुत स्रोत है। इसका नित्य पाठ न केवल जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, बल्कि मन, वचन और कर्म को दिव्यता से भर देता है। जब भी जीवन में संकट आएं, हनुमान चालीसा की शरण लें — आप निःसंदेह सुरक्षित और निश्चिंत अनुभव करेंगे।
जय श्रीराम | जय हनुमान